माता की चिट्ठी

माता की चिट्ठी मिली,झंकृत उर के तार।

लगता मुझको मिल गया,यह पूरा संसार।।

माता की चिट्ठी सुखद,जो लगती उपहार।

माता के बस नाम से,खिल जाता उजियार।।

माता की चिट्ठी रचे,पावन इक विश्वास।

माता का तो नाम भर,है नेहिल अहसास।।

चिट्ठी माँ की दे रही,मुझे असीमित प्यार।

लेकर आई संग जो,खिलती हुई बहार।।

चिट्ठी माँ की जब मिली,मुझे मिला आशीष।

माता देती लाड़ नित,रखे हाथ मम् शीष।।

माँ की चिट्ठी संग में,लाती है उल्लास।

माँ से ही मिलता हमें,क़दम-क़दम विश्वास।।

माँ की चिट्ठी नित्य दे,मुझको चोखा ज्ञान।

कहती बेटे हर घड़ी,रहना तू इनसान।।

माँ की चिट्ठी दे खुशी,देती है नित हर्ष।

देती सम्बल है सदा,जीतूँ हर संघर्ष।।

माँ की चिट्ठी कह रही,रखना हरदम ध्यान।

बेटे तू करना सदा,नारी का सम्मान।।

माता की चिट्ठी लगे,हरदम इक वरदान।

जिसका हर इक शब्द नित,देता नव अरमान।।

माँ की चिट्ठी रसभरी,लिए शब्द हर लाड़।

बेटा-बेटी यदि दुखी,माता लेती ताड़।।

माँ की चिट्ठी दे सदा,संतति को उत्साह।

माता लगती है ‘शरद’,शाहों की नित शाह।।      

              -प्रो.(डॉ)शरदनारायण खरे

                            प्राचार्य

 शासकीय जेएमसी.महिला महाविद्यालय

                    मंडला-481661(मप्र)