पति महोदय ज़ब घर मे होते हैं तब घर का कुछ काम बताओ तो अनसुना कर देते हैं और इस बात पर ज़ब नाराज़गी दिखाओ तो कहते हैं -“तुम बोलती बहुत धीमा हो यार! इसलिए सुन नहीं पाया।” और इस तरह मेरी नाराज़गी को “छू” होना पड़ता है। लेक़िन अब मुझें पति महोदय से काम करवाने का नया तरीका आ गया हैं।
वो क्या हैं कि ज़ब वो फुर्सत में रहते हैं तब यदि उंन्हे कोई कॉफी के लिए पुछ ले तो “ना” नहीं कर पाते। वो अक्सर कहते हैं टी.वी. में आँखे गढ़ाए कॉफी पीने का मज़ा ही कुछ और हैं। सो मैंने उन्हें पुछ लिया- ‘कॉफी पियोगे।’ वो मेरी तरफ़ देखे बिना ही बोल पढ़े-” हॉ” मैंने तपाक से उत्तर दिया- “पँखे पोछ दो बड़े गन्दे हो गए हैं।” उन्होंने हैरानी से मेरी तरफ देखा और कहाँ- ‘लेकिन अभी-अभी तो तुम कॉफी के लिए पुछ रही थी।’ मैंने शरारती अंदाज़ में उत्तर दिया – ‘मैं तो ये चेक कर रही थी कि आपको मेरी धीमी आवाज़ सुनाई दे रही है या नहीं।’ और फ़िर पँखे साफ़ होने के बाद हम दोनों ने साथ-साथ कॉफी पी।
लेखिका जया विनय तागड़े
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