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अनसुनी नहीं रही हमारी कहानी
गुनगुनाने में बढ़ जाती है परेशानी
जिस वक्त खोजने लगते हैं मरहम
आँखो से हमारी निकलती है शबनम।
आती हैं प्रतिदिन लाखों तितलियाँ
इस सुंदर सा मधुवन में, चूमके हमें
बिना कुछ कहे जब उड़ती जाती हैं
आँखों से हमारी निकलती है शबनम।
भोर में भी दोस्तों रात सा है अंँधेरा
अंबर में रहा अब्र का डेरा, फुहार
की गुहार हृदय में न होता है सहन
आँखों से हमारी निकलती है शबनम।
मालिक ने ही दिया है हमें जनम,तो
नेक है हमारा भी कर्म,शजर से हम
फूलों को बेसबब तोड़ता है इन्सान
आँखों से हमारी निकलती है शबनम।
✍️साई नलिनी
बेंगलूर