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घर में जो कुछ चीजें आई
बंट गई कई-कई भागों में,
भाई को है ज़्यादा मिला
बहिनों को आधे-आधे में
प्यार मिला, सम्मान मिला
मिला टुकड़ों- टुकड़ों में,
इस भेद- भाव से थक गयी
बचा नहीं कुछ चिलमन में
खोने को कुछ बचा कहाँ
फिर भी डरती हूँ खोने से,
तन्हाई से भरी हुई ज़िंदगी
फिर भी डरती हूँ तन्हाई से
आशाएं सब बिखर गई है
फिर भी हिम्मत करती हैं,
जीने का कोई वजह नहीं
फिरभी क्यूं जीना चाहती हैं !
● रीना अग्रवाल,
पदमपुर रोड़, सोहेला (उड़ीसा)