आओ… चलें… मिलकर…
पर्वत, पहाड़ और
आसमान से पूछते हैं,
हमारे दिलों के
सुलगते…
अरमान से पूछते हैं…।
हमारे हिस्से का
मुट्ठी भर
आसमान कहां है…?
अनायास…,
जिंदगी में
तूफान लाने वाले
भगवान से पूछते हैं…।।
क्या अपराध था,
जिसका कोई माफी नहीं है ।
एक दूसरे के बगैर भी जिंदा है,
क्या यह सजा काफी नहीं है ।।
न्याय मर चुका हुआ न्यायालय
ना होकर भी अस्तित्व में शिवालय
उस प्रेमालय
संसार से पूछते हैं…।
देख रहा हूं मैं…,
प्यार मोहब्बत के बिना
हाहाकार मचा हुआ है ।
चाहतों की दीवारें
बदरंग हो चुका है ।।
एक चुटकी
सिंदूर की महत्व
वीरान… सुनसान…
हो चुकी जीवन
उस विधवा की
परिधान से पूछते हैं…।
पर्वत, पहाड़ और
आसमान से पूछते हैं ।।
सुलगते दिलों के
अरमान से पूछते हैं…।
तूफान लाने वाले
भगवान से पूछते हैं…।।
मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क
नई दिल्ली-110015
ममो.नं.7982510985