इकहसीं से जब वो मीठे हो गये।
खुदसनम तब लाल पीले हो गये।
याद अब आती नहीं घर गाँवकी,
अजनबीजब अपने जैसे हो गये।
तोड़ते दम दिख रहीं हैं उल्फतें,
नफ़रतों के दाँत पैने हो गये।
लग रहे हर पेड़पर नफरत समर,
उल्फतों के बाग सूने हो गये।
कलतलकजो ख़्वाबमेरा थीपरी,
आज उसके हाथ पीले हो गये।
हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179, मीरपुर, छावनी, कानपुर-4