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शोषित, पीड़ित,
असहाय जनों का
आवाज बुलंदी करने
एक मसीहा आया।
15 नवंबर सन 1875
उलिहातु राँची में
जन्म लिया इस धरती पर
भगवान बिरसा कहलाया।
माता जिनकी करमी हातु
पिता थे सुगना मुंडा।
बेहद चंचल बालक था वो
भाई जिनका कोमता मुंडा।
साधारण कृषक के घर जन्में
था मुंडा जनजाति निषाद परिवार।
प्रारंभिक शिक्षा साल्गा तथा
गोस्नर एवंजिलकल लूथार
चर्च से पूरी किए।
बालकाल्य से ही ब्रिटिश हुकूमत
के प्रति द्वेष रहा।
इधर जनजाति समुदायों पर कहर
बरपाया दमन और शोषण का।
बढ़ता अत्याचार जमींदारों का।
छल कपट से हड़पा भूमि को
यह कुकृत्य रहा सब सेठ,
साहूकारों, दिकु और महाजनों का।
इन हरकतों से विक्षुबद्ध हुआ
सीधा साधा आदिवासी समाज।
लिया प्रण जागृत करने का
युवाओं को संगठित किया।
छिड़ा जंग असमानता और संघर्षों
का उलगुलान का एलान किया।
जंगल, जमीन की रक्षा हेतु
कितने शहीदों ने कुर्बानी दिया।
कितने बार वो जेल गए पर
आन्दोलन को न रुकने दिया।
सामाजिक कुरीति को दूर किया
मांस, मदिरा का त्याग किया।
सिंगबोंगा को स्वीकार किया
बिरसाई अपना धर्म चलाया।
देख साहसी तेवर बिरसा का
विरोधी सब घबरा गया।
षडयंत्र रच फिर से जेल उनको
भिजवा दिया।
9 जून 1900 को जेल में ही
मृत घोषित करवा दिया।
हिला सिंहासन अंग्रेजों का
महाजनी प्रथा का अंत हुआ।
भीम नमन है धरती आबा को
जिसने शोषण को दमन किया।
BHIM KUMAR