कुसुमित सुरभित पुलकित प्यारा,
आलिंगन प्रिय प्रणय तुम्हारा |
विकल नेह की मंथरता में,
विश्व वेदना यह भाव हमारा||
अरी ओ! वेदने!व्याकुल आकुल,
परिधान विकल अश्रु व्याकुल |
तू पली हृदय के कोने में ,
चिर भ्रांति गरल मंथर धारा||
अभिसार प्रणय की शीतलता ,
अनुराग हृदय की कोमलता|
आश्वस्त प्रलय का प्रेमांगन,
आलोक मधुर मोहक धारा ||
यह शांति विकल परिधान महा,
पहना अंतस ने स आस यहाँ |
यह विश्व पटल पर शोभित सा,
एक प्रणय बिन्दु बन नद धारा||
डॉ. निशा पारीक जयपुर राजस्थान