आजादी की लड़ाई में
नारी के पराक्रम की
प्रथम कहानी थी रानी।
पिता मोरोपन्त ताम्बे
माता भागीरथी सापरे की
अकेली संतान थीं रानी।
भदैनी, अस्सी घाट
काशी में जन्मी थीं रानी।
बचपन में मणिकर्णिका
का नाम पाई थी रानी।
मुँह बोले नाम मनु से
जानी जाती थीं रानी।
पिता संग दरबारों में
जाया करती थीं रानी।
लोगों द्वारा छबीली
कही जाती थीं रानी।
बचपन में नाना के
घर पली थीं रानी।
शस्त्र, शास्त्र उभय विद्या
में पारंगत थीं रानी ।
घुड़सवारी, अश्वारोहण
युद्धकला में दक्ष थीं रानी।
धैर्य, साहस, वीरता
की विग्रह थीं रानी।
अल्पवय में गंगाधरराव
से झाँसी में ब्याही
गयी थीं रानी।
एक पुत्र की जननी
बनी थीं रानी।
रूठे विधाता ने
पुत्र को छीना
पर विरह व्यथित
हुई थीं न रानी।
शोध संतप्त नृप ने
लिया पुत्र को गोद
हर्षित हुई थीं रानी।
अल्पवय में नृप ने छोड़
दिया असार संसार
विधवा हुई थीं रानी।
रानी के वैधव्य को सुनकर
अंग्रेजों ने झाँसी को
हड़पने की थी ठानी
अंग्रेजों को पैगाम भेजती
समझौते का निर्भीका रानी।
पर शासक फिरंगियों ने
बात न उसकी मानी।
अंग्रेजों की कुटिल नीति के
आगे विफल हुई थीं रानी।
ब्रिटिश सरकार से अन्तिम
साँस तक लड़ी थीं रानी।
लड़ते-लड़ते वीरगति
को प्राप्त हुई थीं रानी।
रानी की वीरगाथा
याद है सबको जुबानी।
*डा. वत्सला* *सह-आचार्य (संस्कृत)*
*झालावाड़ (राज.)*