अविवेकानंद की अमरीका यात्रा

           ‘प्यारे भाईयो बहनो’ कहने से अब अमरिका में कुछ नहीं होता। न ताली पिटती है न दुनिया आपकी मुरीद होती है। ताली के लिए अब आपको भारत के बारे में कुछ ऐसा बोलना पड़ता है जिसकी आगे चल कर सफाई देनी पड़े। अभी – अभी अविवेकानंद अमरीका गए थे उन्हींने यह फॉर्मूला दिया। वैसे घरेलू नुस्खे की तरह अन्य लोग भी देश में  समय- समय पर इसका प्रयोग करते रहे हैं किंतु वे इसे विदेशी धरती तक नहीं ले जा सके थे। अविवेकानंद ने बाकायदा इस पर अमरीका जा कर ही परीक्षण किया और अपने नाम इसका मीडियाई पेटेंट करा लिया । नतीजे आपके समक्ष हैं। उन्होंने कहा भारत दो है। बात यहीं से आपकी पकड़ में आनी चाहिए। एक आपके पसंद का जिस पर आप गर्व कर सकें। दो, दूसरों के पसंद का। भारत के सांपों, गरीबों, अशिक्षितों आदि से जिन्हें सहानुभूति है, और इतनी है , कि उन पर से नज़र हटती ही नहीं;  फिर चाहे भारत मंगलयान चला दे ,  वैक्सीन का बम्पर उत्पादन कर के विश्व को चौंका दे या यहाँ की लड़कियाँ खेलों में नाम कमा लें। 

           हमेशा की तरह खबरिया चैनल माइक ले कर अविवेकानंद के पीछे- पीछे  दौड़े और  मुँह के आगे लगा दिया- आपने ऐसी कविता क्यों पढ़ी? 

ताली के लिए – अविवेकानंद बोले। 

क्यों- भारतीयता में डूबे उस नर श्रेष्ठ ने आँखों में  कातरता भर कर प्रश्न किया। 

उत्तर आया- इंडियामेड कॉमेडियन हूँ। 

प्रश्न- आपने फिर गुस्ताखी की। यहाँ इँडिमेड का क्या मतलब?

अविवेकानंद- हमारे इंडिया ने हर क्षेत्र में कॉमेडियन खड़े किए हैं। राजनीति में अनेक हैं। वे समय – समय पर राजनीति के साथ – साथ कॉमेडी भी करते रहते हैं। इस तरह वे मनोरंजन के क्षेत्र में दखल देते हैं। मैंने सोचा मैं मनोरंजन के क्षेत्र में रहते हुए राजनीति क्यों न करूँ। प्रेरणा उन्हीं से ली।…लोकप्रियता अर्जित करने की राजनीति।

एंकर ने गहरी सांस ली – ओह! मैं इसे सचमुच की राजनीति समझा था, पार्टियों वाली। फिर भी देश की छवि धूमिल करके लोकप्रियता हासिल करना गलत है। 

उत्तर- हम कहाँ कहते कि सही है। सही गलत का फैसला ऑडिएंस करती है। हम नहीं। आप देख रहे हैं न ! तालियों की गड़गड़ाहट। इसे ही मेरा जवाब समझिए। 

प्रश्न- आपको ऐसी लाइनें लिखने की क्या आवश्यकता थी। 

उत्तर- मैंने सिर्फ भारत के दो रूप बताए। एक कहता है कि  मैं उस भारत से आया हूँ जहाँ दिन में स्त्री की पूजा होती है। ( कह कर चुप हो जाता है। ) 

एंकर- काश आपने सिर्फ इतना ही कहा होता! 

अविवेकानंद- काश! 

एंकर- काश! 

अविवेकानंद – काश! इतना ही सच होता। पूरा सच। दिन और रात दोनों का सच। समान रूप से। 

 एंकर- आपका पेशा सच बोलना है? 

अविवेकानंद – नहीं। मैं लोगों का मनोरंजन करता हूँ। इसके लिए मैंने कविता पढ़ी। 

एंकर- मनोरंजन के लिए क्या आप अपने घर की इज़्ज़त उछाल सकते हैं? आपने आगे जो कहा इससे देश की कीर्ति धूमिल हुई है। 

अविवेकानंद- मैं न कहता इसकी केवल दो स्थितियाँ हो सकती थी, एक- भारत में रात न हो। दो – भारत में रेप न हो। 

एंकर- फिर भी रेप भारत  की पहचान नहीं है। समाज में अनेक प्रकार की विसंगतियाँ हैं, अराजकता है किंतु वह समाज की पहचान नहीं है। अगर हमारे देश में बहुत से लोगों को मधुमेह है। दुनिया भले इसे मधुमेह की राजधानी कहती हो, तो क्या हम ‘जहाँ डाल- डाल पर सोने की चिड़िया’ की जगह ‘जहाँ घर- घर मिलें मरीज़ सुगर के’ गाएंगे? मिस्टर अविवेकानंद कोई भी सच देश की इज़्ज़त से बड़ा नहीं होता। 

अविवेकानंद विदेशी चैनलों में मिल रही टी आर पी से अभिभूत हैं। देश इस परिवर्तन पर हैरान है। 

अनीता श्रीवास्तव

मऊ चुंगी 

टीकमगढ़