पिरान्हा

किसानों की शहादत से

पसीजना होता यदि पत्थर दिल

तो कब का पसीज गया होता

वैसे है जैसे बाल हठ से कभी नाराज हुआ

पिता का हृदय पसीज जाता है

वह कर देता है उसकी जिद पूरी।

परंतु इतने लंबे वक्त तक

जाड़ा, गर्मी, बरसात को झेलते

डटे रहे अपनी मांग पर देश के अन्नादाता

वैसे ही जैसे सीमा पर डटे रहते हैं

हमारे सेना के वीर जवान 

क्या अतिवृष्टि, क्या हाड़ कंपाने वाली ठंड

क्या सियाचीन ग्लेशियर का माइसन तापमान

क्या चिलचिलाती धूप।

आंदोलित किसानों को क्या क्या नहीं कहा गया

उन्हें मीडिया के हर माध्यम से किया गया घोषित

आतंकवादी, खालिस्तानी, भारत को बांटने वाले

डींगे हांकते रहे तुम कि इनकी क्या औकात

जो हिला दे हमारे सत्ता की चूल

और लगा दिया उनके लिए सड़कों पर कील।

लेकिन अब क्या?

इसे सत्तासुख का लालच कहें

या लोकतंत्र की जीत

लेकिन तो तय है कि 

तुम फकीर नहीं

वही पिरान्हा हो

जो इंसानों का शिकार कर खुश होता है।

                            —- संतोष  पटेल

राष्ट्रीय अध्यक्ष, भोजपुरी जन जागरण अभियान ,नई दिल्ली।