नहीं चाहता,
किसी दिखावे की रंगत,
या संगत की लिखावट का
कोई सबूत अपने ऊपर,
यह तो स्वयं हवा सा है।
महसूस करना पड़ता है
इसकी रफ्तरों को,
मन के धरातल पर।
किन्हीं कल्पनाओं सा
मासूम होता है ये,
जो ख्वाहिशें सच होने
के ख्याल से ही
हो जाता है खुश।
संजोए रखता है,
छोटी छोटी खुशियों के
सूरज चांद और तारे,
अपने भीतर।
गहराई इसकी माप लेना
कहां मुमकिन है,
परीक्षा की परिधि में भी
नहीं टिक पाता ये,
मजा तो है
प्रेम में पड़कर,
आत्माओं के अंतरिक्ष में
गोते लगाने का।
और तो और
प्रेम में खोए रहना
कहीं अधिक सुखकारी है,
इसे पाने की तलब से,
आसमान भी क्या कोई
पा सकता है?
दूर से तकती नजरें ही
गवाही देती है,
इसकी खूबसूरती की।
ऋद्धिका आचार्य।
ऐडवोकेट बसंत आचार्य।
बीकानेर।