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“यार रमेश !तुम क्या चाहते हो ,मुझे अब तक समझ नही आया.हर लड़की में कमियाँ क्या है बता भी दो.”
“अरे नही मोहित !,मैं जब किसी को देखता ही नही तो कमी क्या और क्यूं बताऊं.”
मोहित-“फिर मैं तुम्हारें घर पर इस बार क्या कहूंगा.?”
रमेश-“कह देना कुछ भी जैसा कहते आए हो.”
मोहित-“तुम कब तक सौम्या की यादों में भटकते रहोगे,लौटकर कोई नही आता वहाँ से पगले जहाँ वो गई है”.
रमेश-“नहीं ,मैं नहीं मानता,उसकी बॉडी भी तो नहीं मिली मुझे अबतक खाक छानकर रह गया .”
समझ में नहीं आता जमीन खा गई उसे या आसमां निगल गया….
रमेश-“कितने खुश थे हमदोनों, बातों ही बातों में उसे छुपम-छुपाई खेलने की क्या सुझी थी,खो ही गई वो.”
पर वो आवाज कुछ गिरने की थी पानी में ,बहुत ढूंढा कुछ नही था.मिली थी तो सिर्फ उसकी स्कार्फ और घड़ी जो उसे बेहद पसंद थी…. उसी क्षण से मेरा दिमाग काम नही कर रहा है …
क्या हुआ और क्या हुआ मैं जानना चाहता हूं.
मोहित-“दो वर्ष हो गये उसे ,अगर जीवित होती तो क्या तुझे याद नही करती ,आखिर प्यार करते थे न तुमदोनों.”
रमेश-“इसलिए तो मैं किसी और को अपना नही सकता.”
मोहित-“अब मान भी जाओ ,तुम्हारी माँ की हालत ठीक नही ,कब तक मैं बातें बनाता रहूँ..?”
मोहित-“पर ठहरो वो घड़ी कहाँ है…?तुमने पहले क्यूं नही बताया..?”
रमेश-“ये लो घड़ी..बंद पड़ी है.मेरे दिमाग में कभी ये बात आई ही नही तो मैं क्या करता.”
मोहित -“मैं इसमें बैटरी डलवा कर आता हूं.”
रमेश-“आ गए तुम..
मोहित-रमेश .! ,इस घड़ी की खासियत तुम्हें मालूम है.?
“ये अलार्म पर सेट है,बैटरी की वजह से बज नही पा रही थी.इसमें बॉयस रिकार्डिंग की भी सुविधा है.”
रमेश_”नहीं मुझे नही मालूम थी इसकी इतनी खूबियां. ऑनलाइन परचेजिंग थी ,पसंद सौंम्या की ही थी ,मैनें सिर्फ अपने अकांउट से पेमेंट किया था.”
मोहित-“बेवकूफ़ कहीं का ,आजतक मुझे बताया क्यूं नही अब सून क्या रिकार्ड है..
सौम्या-रमेश मैं बहुत दूर निकल आई हूं ,अभी-अभी कॉल आया था मेरे पापा का एक्सीडेंट हो गया है ,मैं तुमतक पहुंचूंगी तबतक बहुत देर हो जाएगी.इसलिए मैं तुमसे बिना मिले निकल रही हूँ .निशानी के तौर पर अपनी स्कार्फ छोड़ रही हूं.सब ठीक रहा तो हम मिलेंगें.मेरे नंबर पर कॉल करना..मैं इंतजार करुंगी,तुमने जबाव मांगा था मुझसे और मैं दे नही पाई…ओके बाय.
रमेश-“अपने सर पकड़ कर बैठा बदहवास सा हो उठा…मैं क्या-क्या सोंचता रहा और वो मेरा इंतजार करती रही.
मोहित-अभी फोन लगाओ उसे रमेश,कहीं देर न हो जाए.
रमेश-“परऽऽ,क्या वो फोन उठाएगी..?”
कहीं उसने किसी के साथ अपना घर बसा लिया हो.?
मैं कैसे बात कर सकता हूं,उसका गुनाहगार भी हूं.
मोहित-लाओ मुझे फोन,मैं ही बात करता हूं.
हैलो,आप कौन ..?
मैं मोहित ,रमेश का दोस्त ,मै मिल सकता हूं.
सौम्या-नहीं,अब क्या फायदा,वक्त बहुत आगे निकल गया है.
मतलब ,आपने किसी और से ….
नहीं ,ऐसा कुछ भी नही है.पापा की जान तो बच गई पर अपने पैरों पर चल नही सकते,और मैं उन्हें इस हालत में छोड़ नही सकती.
मोहित-रमेश के बारे में जानना नहीं चाहोगी..?
सौम्या-इच्छा तो नहीं,पर बताना चाहें तो बता दीजिए.
मोहित-रमेश आजतक तुम्हारे लिए और सिर्फ तुम्हारे ही लिए इंतजार करता रहा है.
मिलोगी तो सच्चाई से सामना कर पाओगी.
एक गलतफहमी थी जो बहुत दुखदायी थी.
सौम्या और मोहित आपस में मिलते है और सारी जानकारी होने पर रमेश से मिलने के लिए आतूर हो उठती है.
रमेश सौम्या को देखकर माफी मांगता है.
तभी मोहित कहता है,अभी भी वक्त बाकी है.
सपना चन्द्रा
कहलगाँव भागलपुर बिहार