मैं अल्हड़ मदमस्त हूँ अक्रूर हूँ
श्रम से कभी ना थकता मैं मजदूर हूँ
ठिठुर रहें हों जीव जगत के सर्दी से
झुलस रही हो धरती चाहे गर्मी से
जल वृष्टि हो चाहे रुकता काम नहीं
काम निरंतर करता हूँ विश्राम नहीं
मैं आलस निद्रा रोगों से दूर हूँ
श्रम से कभी ना थकता मैं मजदूर हूँ
ना चिंता कल की ना सपने भी कल के
लेकिन आज को जीता हूँ मैं जी भर के
सूखी रोटी पेट मेरा भर जाती है
पत्थर पर भी नींद मुझे आ जाती है
मैं दुनिया के दुख से कोसों दूर हूँ
श्रम से कभी ना थकता मैं मजदूर हूँ
मुझमे शक्ति है पर्वत मैं तोड़ दूँ
प्रण धर लूँ तो मैं नदियों को मोड़ दूँ
कर दूँ उपजाऊ मैं बंजर भूमि को
श्रम से मैं उपवन कर दूँ मरुभूमि को
अपने बाजू के बल पे मगरूर हूँ
श्रम से कभी ना थकता मैं मजदूर हूँ
मेरे श्रम से निर्मित घरों की दीवारें
मेरे स्वेदकणों से ऊंची मीनारें
श्रम से मेरे उत्पादन व्यापार है
श्रमबिन्दु से मेरे सब बाजार हैं
अपने शोषण से थोड़ा मजबूर हूँ
श्रम से कभी ना थकता मैं मजदूर हूँ
सुरेश रायकवार
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