“दर्द बिछोह का”

मन क्लान्त श्रान्त  उद्विग्न सदा, 

आशंकित  विरह  विशाद महा|

अश्रु  सिक्त  धार  बही   ही  में,

जब दर्द  बिछोह का निरत रहा||

व्याकुल अंतस जीवन घन बिन,

बरसा  सावन शीतल जल बिन |

इक विरह वरिद की अगन जला, 

सहमा जब दर्द बिछोह का छिन||(क्षण) 

नयनों  में  छाया अविराम गरल, 

घट  आकुल प्रणय विराम सरल|

बहती  नद  विरह निकाम  सदा,

अश्रु  बन  अगन  विकार  दहल||

मृग  मरीचिका की  कस्तुरी सी, 

भटकन अटकन अभिशप्त बनी|

हर  राह  पे  प्रिय के दरस  मिले,

विरहन  चकवा सी  चकित रही||

जब  दर्द  बिछोह  का  अंतर में,

करता   घर    घुटन  अंधड़   में |

झंझावत  झार   हिलाती   हृदय,

मन तार तार दर्द की सिकुड़न में|

 डॉ. निशा पारीक जयपुर राजस्थान