एक दिन मुन्नी की तबीयत बहुत बिगड़ गई। उसे अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन करने का कहा। मुन्नी के पिता विनय यह सुन बहुत परेशान हो गया। अभी 15 दिन ही तो हुए हैं। उसकी जॉब छूटे हुए। ऑपरेशन का खर्च कहां से जुट पाएगा। वह परेशान तो था ही। इधर, बेटी की हालत गंभीर होती जा रही थी। मसला केवल पांच हजार का ही था। इतनी जल्दी कैसे इतने रुपए का बंदोबस्त हो। इसी उधेड़बुन में वह अपने मित्रों को फोन लगाता रहा। अचानक उसे ध्यान आता है कि एक बार उनके बहुत पुराने साथी सुदर्शन जी से बात करके देखता हूं। उसने उन्हें फोन लगाया। पहले तो उन्होंने असमर्थता जताई, लेकिन बच्ची की हालत जानकर प्रयास करने की बात कही। विनय को उम्मीद की किरण नजर आई। उसके अकाउंट में सुदर्शन जी ने पैसा ट्रांसफर करवा दिया। साथ ही कहा कि यह राशि उन्होंने अपने मित्र से लेकर दी है। विनय बोला-जल्द ही थोड़ा-थोड़ा करके लौटाएगा। मुन्नी का ऑपरेशन हुआ। वह ठीक हो गई। इस बीच विनय जॉब तलाशते रहा। उसे काम मिलता भी, लेकिन तनख्वाह कम रहती। फिर हर दो महीने बाद उसे हटा दिया जाता। ऐसा करते-करते वह कई जगह काम कर चुका, लेकिन स्थाई काम नहीं मिला। वह परेशानियों में घिरता चला गया। वह कर्ज के बोझ तले दबता चला गया। उधर, सुदर्शन जी का एक बार फोन आया। उसने कहा कि मैं आपकी राशि लौटा दूंगा। वह अब नई जॉब करने लगा। उसे लगा कि सबसे पहले वह सुदर्शन जी का कर्ज चुकाएगा। वह आश्वस्त हो गया। तभी कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन लग गया। विनय फिर जॉब लेस हो गया। लॉक डाउन हटते ही फिर तलाश शुरू की। इस बार काम तो मिला, अभी कुछ समय ही काम किया था कि फिर दूसरा लॉक डाउन लग गया। विनय घर बैठ गया। उसकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई। कर्ज चुकाना दूर घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। विनय अब भी जॉब तलाश रहा है। सुदर्शन जी ने कर्ज न लौटाने के कारण अपनी पीड़ा सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर दी। विनय तो जैसे जमीन में ही गड़ गया। पिता का चेहरा देख मुन्नी भी पीली पड़ने लगी।
-प्रीतम लखवाल, हीरानगर मेन रोड, इंदौर।