धुंए की लकीर

    शाम को माताजी, पिताजी के पहले श्राद्ध की तैयारी क्या- क्या करना है, बता रही थी। सामान की लिस्ट के बाद ,कोरोना के कारण माताजी ने भोजन पर बुलाने का सबको मना किया ,बड़े बेटे को भी नहीं बुलाया।  पिताजी की तेरहवीं के बाद,बड़े बहू- बेटे ने अपना रुप दिखाया।

    बड़ा बेटा जो सरकारी आफिस में प्रथम श्रेणी का पदाधिकारी था।  पिताजी का मकान बिक गया था ।छोटे  भाई की छोटी सी किराना दुकान थी। अचानक फोन बजा, बड़ी बहू का फोन आया बोली-“कल दस बजे आप सब आना माताजी को भी लाना।कल बाबूजी का पहला श्राद्ध है”। छोटी बहू ने पूछा-” कब तक पूजा शुरु होगी”।तो वह बोली- “दस बजे तक पूजा होगी फिर भोजन”कहकर फोन रख दिया।

    सुबह सब ठीक साढ़े नौ बजे पहुंचे मदद करने व पूजा में शामिल होने मंशा से।    माताजी खुश हो रहीं थीं कि शायद बेटा बदल गया है।कहती जा रहीं थी-” जल्दी चलो पूजन से पहले पहुंच जायें।”

   जैसे ही माताजी बड़े बेटे के घर में अंदर पहुंची देखा पूजन -तर्पण -अग्नि भोज भी हो गया था।माता जी ने पूछा-” पूजा हो गई “? बड़ी बहू ने कहा-“हां पण्डित जी के पास समय नहीं था।तो जल्दी पूजा कर गये।”सुनते ही माताजी फूट- फूट कर रोने लगी ,सब समझे  माताजी पति वियोग में रो रहीं हैं,छोटा बेटा- बहू ढांढस बंधा रहे थे।  किसी को समझ नहीं आया ,माताजी पति वियोग में रो रही थीं ,या अग्नि कुण्ड से निकलती धुंऐ की लकीर देखकर ।

              🌹 सुनीता परसाई जबलपुर, मप्र