डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657
(हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)
*****
अंधेर जंगल में जानवरों का मुशायरा चल रहा था। सभी जानवर आए थे। मुशायरे का विषय था – परमदयालु जंगलप्रेमी श्रीश्रीश्री रंगा सियार का यशगान। इस मुशायरे की विशेषता यह थी कि यहाँ जो श्रेष्ठ माने जायेंगे उन्हीं में जंगलरत्न, जंगलश्री, जंगलभूषण, जंगल विभूषण, जंगलश्री, जंगलपीठ, जंगल अकादमी और कई तमाम तरह के जंगली अवार्डों की घोषण की जाएगी। मुशायरे का केवल एक ही नियम था कि श्रीश्रीश्री रंगा सियार को परमदयालु, शाकाहारी, जंगलहितकारी, जंगलोद्धारक प्राणदाता सिद्ध करें। नियम सरल था। काम कठिन था। एक से बढ़कर एक जानवरकवि आए थे। रंगा सियार महाराज की कृपा से हिरण, भैंसा, खरगोश, गधे, शेर, उल्लू की अतिम पीढ़ी बची थी। बाकी सब रंगा सियार की उदर पीड़ा को मिटाने के लिए हँसते-हँसते शहीद हो गए। इन शहीदरत्नों की संतानों में जंगली अवार्डों को लेकर गजब की होड़ थी।
मुशायरा शुरु हुआ। मरियल से हिरण कवि ने रंगा सियार का यशगान करते हुए कहा-
ऐ मेरे जंगल के जीवों तुम खूब लगा लो नारा
रंगा सियार ने अपने मुख से, इस जंगल को है संवारा चूंकि निजीकरण ने जंगल का, मान-सम्मान है बढ़ाया इसीलिए तो फल-फूल-हवा पर, जीएसटी है लगाया
मरियल हिरण के नहले पे दहला फेंकने के लिए गधाकवि कूद पडा-
मुझे न तन चाहिए, न मन चाहिए
बस रंगा सियार की अपरंपार कृपा चाहिए
जब तक जिन्दा रहूं, इनकी गुलामी करूँगा
मरुँ तो उनके पंजे का मुझ पर निशान चाहिए
गधाकवि की रंगा सियार भक्ति देखकर भैंसे से रहा नहीं गया-
कुछ नशा रंगा सियार की आन का है,
कुछ नशा रंगा सियार की मान का है,
अंधभक्त हैं हम श्रीश्रीश्री रंगा सियार के,
रंग बदलने का हुनर सीखा है उनके नाम से।
काले अक्षर भैंस बराबर की कविता सुनकर शेर का माथा ठनका। उसने भी जोश में आकर कहा-
हवाओं से कह दो कि यहाँ मत बहना
रोशनी से कह दो कि यहाँ मत चमकना
पंचतत्वों को बेचने का हुनर है जो जानता
उनके सामने उछलने की हिमाकत न करना।
शेर की दमदार कविता सुनकर जंगली अवार्ड उनकी ओर झुकने ही वाला था कि उल्लू कवि बीच में कूद पड़ा-
सारे जहाँ से अच्छा जंगलिस्तान हमारा
हम चुलबुलें हैं उसकी वो सियार है हमारा।
घमंड वो सबसे ऊँचा
खूनी साया सियार का
वो रक्षक हमारा वो भक्षक हमारा ……
मुशायरे में एक से बढ़कर एक शेरो-शायरी सुनने को मिली। रंगा सियार गदगद हो उठा। उसने सभी का सम्मान करने का फैसला किया। जंगली अवार्डों को प्लेट बनाकर उनके लिए अच्छा-अच्छा भोजन परोसा गया। बाद में रंगा सियार की सेवा में उन्हें परोस दिया गया।