देश में आधे से अधिक महिलाएं और बच्चें ‘एनीमिया’ के शिकार

-राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में खुलासा
नई दिल्ली । भारत में कन्या शिशु की जन्मदर वृद्धि की अच्छी खबर के साथ महिलाओं और बच्चों में खून की कमी चिंता का सबब बनी हुई है। 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों और अखिल भारतीय स्तर पर आधे से अधिक महिलाएं व बच्चे रक्त की कमी ‘एनीमिया’ के शिकार पाए गए हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के चरण दो के नतीजों से यह जानकारी मिली है। सरकार ने 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य प्रमुख संकेतकों की फैक्टशीट 2019-21 जारी की। यह एनएफएचएस-5 के चरण दो के तहत तैयार की गई है।
इस चरण के तहत अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड जैसे राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वे किया गया था। एनएफएचएस-5 के पहले चरण में 22 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया था। इनकी सर्वे रिपोर्ट दिसंबर 2020 में जारी की गई थी।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, चरण दो के सर्वे के मुताबिक अखिल भारतीय बाल पोषण संकेतकों में मामूली सुधार दिखाई दिया है। कम वजन के बच्चों का प्रतिशत 36 से घटकर 32 प्रतिशत हो गया है। सर्वे के निष्कर्ष रूप में कहा गया है कि बच्चों और महिलाओं में एनीमिया अब भी चिंता का विषय बना हुआ है। पिछले एनएफएचएस-4 की तुलना में आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं (गर्भवती महिलाओं सहित) 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों व अखिल भारतीय स्तर पर रक्त की कमी से जूझ रहे हैं। हालांकि 180 दिनों या उससे अधिक समय की गर्भवती महिलाओं को आयरन फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों की खुराक देने से उनमें खून की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हुई है। अखिल भारतीय स्तर पर संस्थागत प्रसव 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गया है। बयान में कहा गया है कि पुडुचेरी और तमिलनाडु में संस्थागत प्रसव 100 प्रतिशत है। सात राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह 90 प्रतिशत से अधिक है। बता दें कि संस्थागत प्रसव से मतलब किसी स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल निगरानी में ही प्रसव कराने से है।