महंगाई

हाय हाय ये महंगाई ।

खत्म हो रही सरी कमाई ।

उपर से कोरोना ने ,

खूब करी भरपाई ।

बीमारी ने ऐसी सूरत दिखाई ।

व्यापार पर भी मंदी छाई ।

डॉक्टर की फीस ने,

कमर तोड़ दी भाई ।

आटे दाल के भावों को सुनकर हिले ।

हर वस्तु अब महंगी मिले।

किसको बताएं व्यथा अपनी,

परेशानी में हर एक इंसान दिखे ।

सरकार पर सरकारें आतीं ।

इस समस्या का समाधान ना लातीं ।

महंगाई, भुखमरी से आम आदमी है मरता,

यह पीड़ा पर किसी को ना दिखती ।

जाने कब यह सब सुधरेगा ।

जब भूखा कोई पेट ना रहेगा ।

यही प्रार्थना है अब रब से ,

जल्द ही इसका हल निकलेगा  ।

रश्मि वत्स

मेरठ ( उत्तर प्रदेश)