भर लो मुझको बाँहों में ले जाओ चाँद के पार।
अपनी दुनिया वहीं बसेगी वहीं रहे घर द्वार।
चंदा जैसा तुम्हें निहारूँ चाँदनी बन कर छैया,,,
प्रेम रूप में परिभाषित हो अपना यह संसार।।
रूप अलौकिक शरद पूर्णिमा चंदा जेसा जब हो,,,,
अमृत की धारा में भीगूँ तुम संग प्रेम फुहार।।
धरती से चलकर अम्बर तक एक करेंगें दोनों,,,,
रंग बिरंगे फूलों से फिर तुम करना श्रृंगार।।
शरद ऋतु में चंद्र पूर्णिमा अनुपम गीत सुनाए,,,,
मधु नैनों में दृश्य मात्र से बसता जीवन सार।।
मधु शंखधर स्वतंत्र
प्रयागराज