क्या-क्या मैं लिखूं..

न हंसता हूं न रोता हूं, मैं बेबस हो तुझे पुकारा करता हूं ,

क्या बतलाऊं कैसे सबसे अपना हाल छिपाए फिरता हूं !!

मौसम बीते, सदियां बीती,  मैं भी “बीत” गया ऐसे ही ,

पर “एक दर्द” रहा इस सीने में, मैं जिसे उठाए फिरता हूं !!

न कह पाऊं, न सह पाऊं, है अजब फेर ये जीवन का ,

मैं पतझड़ का “सावन” बनकर, आंसू बहाए फिरता हूं !!

ये रातें न तो जागी हैं न सोई सी, दिन बेचैनियों से भरा ,

मैं अजब से इस माहोल को ही , शहर बताए फिरता हूं !!

कभी हालातों से, तो कभी जज्बातों से रूठा सा रहता हूं ,

पर तेरी उन प्यारी बातों से मैं खुद को मनाए फिरता हूं !!

सुकून भी है “साथ” होने का, है दर्द भी पास न होने का ,

कोई कहे कि क्या है ये, जिसे मैं “प्रेम” बनाए फिरता हूं !!

कुदरत के हिस्से हम सब, न जानें क्या लिखा लकीरों में ,

तेरे “उस दिन” के एलान को मैं दिल से अपनाए फिरता हूं !!

सुन “मनसी”, बेहिचक, बेसबब, बेहिसाब, बेशुमार….

जानें क्या-क्या मैं “लिखूं”..और क्या “बतलाए” फिरता हूं !!

नमिता गुप्ता “मनसी”उत्तर प्रदेश , मेरठ