बचपन में

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लौटना चाहता हूं मैं अपने

नटखट से बचपन में

जहां बस खुला खुला आसमां

खुला खुला प्यार का सागर था।

मां की ममता भरी लोरियां

पिता की गोद का सहारा था।

दो कदम गिर गये तो सम्हालने

को मां पिता का प्यारा साथ था।

बचपन खोते ही जिम्मेदारियों

का ये एहसास कि तुम अब

सावधान ,सचेत हो जाओ

तुम अपना बचपन खो रहे हो

अब तुम बचपन से बड़े हो रहे हो।

आप को लगता होगा बड़ा होना अच्छा?

मुझे आज भी लगता है मैंने अपना

बचपन क्यों खो दिया?

काश मेरा बचपन मुझसे जुदा न होता

कितना अच्छा होता मैं बच्चा ही रहता।

कहानी पहेलियां गीत कविताएं सुनते

अपनी मां के आंचल में इस ठिठुरन में

पल्लू पकड़कर आराम से सो जाता।

बचपन में लोट जाता ,चिंता मुक्त हो जाता।

आज कौन किस की सुन रहा है

बड़े होने के मायने बदल गये है

अपने ही अपनों से रूठ रहे हैं।

एक बार रूठे तो मनाना मुश्किल है।

बचपन की तरह थोड़े ही है रूठ गये

तो लालीपाप चाकलेट देकर मना लिए गए ।

बचपन में लौटना चाहता हूं मैं

एक चिटठी हे!भगवान प्रार्थना की

अभी अभी लिखना चाहता हूं मैं

अपने हंसते खेलते बचपन में

लौटना चाहता हूं फिर से मैं……….. ।

       लाल बहादुर श्रीवास्तव

       9425033960