तू बस आम है,आम की तरह ही रह!

किसी की जीत होती है तो तू बहुत खुश हो जाता है,होना भी चाहिए। सरकार की हार होते देखता है  तो तू नाच उठता है लेकिन एक बात बता,किसी की हार और किसी की जीत से तेरी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है !जो लोग अपनी जीत बताते  हैं, यदि वास्तव में ऐसी जीत से उनके दिन पलट जाएं तो हम सब मिलकर आगामी दिनों में विजय दिवस मना लिया करेंगे। लेकिन फिर भी तू ज्यादा खुश मत हो क्योंकि तू जहां है, वहीं तो रहता आया है।समझ ले भाई कि तू आम आदमी है और आम आदमी ही रहेगा।भले ही तेरे नाम पर दल बन गये हों लेकिन ये सब भी राजनीति में बढ़ते दलदल से अधिक कुछ नहीं। 

सुन,मैं कह रहा हूं कि तू सरकार से नहीं लड़ सकता।माना कि तेरे वोट से सरकार बनती है लेकिन इसी एक बात को लेकर ज्यादा गलतफहमी में मत रह कि तू वोट नहीं देगा तो सरकार ही नहीं बनेगी।मैं जानता हूं कि तू वोट तब भी देगा। चुनाव आने दे,तुझे कुछ दिन दारू पीने को मिल जाएगी या फिर कुछ नगदी वगैरह मिल जाएगी और तू फिसल जाएगा।

तू क्या समझता है कि लोकतंत्र में मतदाता ही सरकार होता है।यह तेरी गलतफहमी है। सरकार तो जो होती है वही होती है। सरकार शाश्वत है,बस चेहरे बदलते हैं,मोहरे वही रहते हैं। इसीलिए कह रहा हूं कि सरकार की सरकार होने का मुगालता मत पाल। आखिर सरकार की सरकार कौन हो सकता है। सरकार सरकार है। सरकार के झूकने को झूकना मानने की ग़लती मत करना और फिर सरकार झूकती भी है तो उसके निहितार्थ तेरे समझ में नहीं आएंगे। हां, सरकार के खिलाफ  तुझ जैसे अललटप्पू का गुस्सा जुगनू की चमक से अधिक कुछ नहीं है।

क्या कहा तू अपनी बात मनवाने के लिए धरने-प्रदर्शन पर बैठ जाएगा तो सुन ले तेरी तरफ देखने कोई  आने वाला नहीं है।तेरे पास ऐसी कौन सी ताकत है जो सरकार को भी झुका दे।धरने पर तू अकेला सर पटक-पटक कर भी चीखेगा तो तेरी दाल नहीं गलने वाली।और आईपीसी, सीआरपीसी की कोई भी धारा  लगाकर आवारागर्दी करते हुए या शांति भंग करने के आरोप में पकड़कर अंदर कर देंगे और तेरी तरफ कोई झांकने भी नहीं आएगा।यदि रो पड़ेगा तो तेरे आंसू देखकर कोई पिघलने वाला भी तो  नहीं है ,तू रोएगा तो रोता ही रह जाएगा।तेरे रोने पर कोई कानून नहीं बदलने वाला और न ही  तेरे पक्ष में कहीं विरोध स्वरूप खापों की कोई महापंचायत होना शुरू होगी। यदि भूख हड़ताल पर बैठ जाएगा तो तेरी भूख से किसी को मतलब नहीं रहेगा,भूखा ही मर जाएगा।

इसीलिए भले आदमी कह रहा हूं कि चुपचाप बैठ जा और कोई गलतफहमी मत पाल। कहीं गलती से किसी पुलिसिया सरकार ने ठोंक दिया तो तेरे लिए तेरे घरवालों के सिवाय कोई दूसरा रोने आने वाला भी नहीं है। राजनीति की रोटी वहीं सेंकी जाती है जहां वोट की भूख शांत होने की संभावना हो।समझ रहा है न मैं क्या कह रहा हूं।

डॉ प्रदीप उपाध्याय,16,अम्बिका भवन,उपाध्याय नगर,मेंढकी रोड,देवास,म.प्र.

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