मां ही मंदिर मां ही पूजा

मां का कोमल मन,

सागर समान गहरा।

जिसमे समाया है,

असीम प्यार और पीड़ा।१।

पीड़ा को दबाकर,प्यार के धागे में,

रिश्तों का ताना-बाना बुनती है।

कमियों को आंचल में छुपा कर,

धैर्य की लौ से घर-आंगन सींचती है।२।

सबकी पसंद का रखती है ख्याल,

बस अपनी पसंद को करती नजरंदाज।

सुबह से शाम तक शाम से सुबह तक, 

अपनी धुन मे करती अनगिनत काम।३।

सुत की सुध -‘बुध मे खोई रहती,

फिर भी घर को करीने से सजाए रखती है।

अपने सपनों की तिलांजलि देकर,

बच्चों के सपनों को करीने से चुनती है।४।

परेशानियों का हलाहल पीकर,

सदा हसती-मुस्कुराती रहती है।

बुरी नजर ना लगे हमे सदा,

अपने आंचल की छांव मे रखती है।५।

मां ही मंदिर मां ही पूजा,

मां बिन घर-संसार अधूरा है।

मां की भोली सी सूरत के आगे,

दुनिया की हर मूरत बदसूरत है।६।

प्रियंका पांडेय त्रिपाठी