संजीव-नी|

दिन  को एक कोने में सिसकते हैं|

दिन  को एक कोने में सिसकते हैं,

दीप तो रात में ही चमकते हैं|

 मंजिलों  की खबर नहीं जिनको,

 एक एक मोड़ पर ठिठकते  हैं|

मेरे घर में तुम्हारी खुशबू है,

फूल तो बागों में महकते हैं|

तेरी यादों के साये रातों को,

जुगनू की तरह चमकते हैं|

आ जाओ तो बतरस में गुजरे रात,

वर्ना आँखों मे यूँ ही रात बिताते हैं|

कुछ कवि ऐसे भी हैं संजीव जो,

कुछ कहते नहीं सिर्फ लिखते हैं|

संजीव ठाकुर,15, रिक्रिएशन रोड

चोबे कालोनी, रायपुर छ.ग.

62664 19992, 9009415415.