इक बहाना मिल गया

 निगाहें क्या मिली

इक बहाना मिल गया

घुली मेरी धड़कनों में ऐसे

इक दीवाना मिल गया

 करती हुई इंतजार तुम मेरा

 दिखती अक्सर तू राहों में 

 बढ़ गई है तेरी बेकरारी 

 भरना चाहती मुझे अपनी बाहों में 

 बेसब्री के बादल तैरने क्या लगे

 गमे दिल को तराना मिल गया

 घुली मेरे धड़कनों में ऐसे

 इक दीवाना मिल गया

 कभी बहके थे पांव मेरे

 नहीं थे मानो जमीं पे

 बढ़ गई थी मेरी बेचैनियां

 चैन नहीं मिला मुझे कहीं पे

 डसने लगी थी तनहाइयां कि

 मौसम सुहाना मिल गया 

 निगाहें क्या मिली

 इक बहाना मिल गया…..

 खत्म हुई इंतजार की घड़ियां

 जुड़ गई तेरे मेरे प्यार की कड़ियां

 ना करेंगे तुझे परेशां बेसब्री के बादल

 धुलेंगे न अब तेरी आंखों के काजल

 मुरझाए हुए चेहरे पर जैसे 

 अरमानों के फूल खिल गया

 घुली मेरे धड़कनों में ऐसे 

 इक दीवाना मिल गया 

निगाहें क्या मिली

इक बहाना मिल गया 

घुली मेरी धड़कनों में ऐसे

इक दीवाना मिल गया

          ……राजेंद्र कुमार सिंह

लिली आरकेड,फलैट नं-101

इंद्रानगर,वडाला पाथरडीह रोड

मेट्रो जोन,नाशिक-09,ईमेल: