कोई गीत प्रेम के गाता
कोई गम को छुपाता है
कोई आंसू को पीकर भी
सारे जग को हंसाता है।
हलाहल कंठ में धर कर
अमरता दान करता है
यहां की रीत को समझे
वही नरता को धरता है।
कहे भी तो किसे अपना
पराया कौन उसका है।
रूठ कर भी मना लेना
यही पेशा तो उसका है।
नए हालात में जी कर
पुराना हाल उसका है।
दिलों को जोड़ कर रखना
रोजाना काम उसका है।
खिलाकर फूल शूलों में
चमन को जो सजाता है
सींच कर खून से अपने
पसीने से नहाता है।
बागबां है वही सब का
वही सब को नचाता है
आसमां से धरातल तक
कोई तो है जो चाहता है।
रास है हाथों में उसके
वही सबको चलाता है
ह्रदय में है बसा सबके
कहां कोई देख पाता है।
निलेश जोशी “विनायका”
बाली, पाली, राजस्थान।