छलक न जाएँ कहीं गम किसी बहाने से|
छलक न जाएँ कहीं गम किसी बहाने से,
झिझकता रहता हूँ गुल के मुस्कुराने से |
हर रोज बहुत हिचकियाँ आतीं होंगीं ,
मैं कर रहा उसे याद इक ज़माने से|
ये भारी बोझ भी रख लिया सीनें में,
लगा दिया तेरे दिए दर्द को ठिकाने से |
जहाँ में ऐसा कोई जख्म नहीं ज़माने में,
जिसे परहेज हो हमको गले लगाने से |
अनगिनत ख्वाब थे उसकी महफ़िल में,
रोको उसे तनहाइयों को गले लगाने से|
कोई मिलता नहीं दर्द बांटने वाला संजीव,
आशिक बेचारा जाये कहाँ इस मयखाने से |
संजीव ठाकुर,अन्तराष्ट्रीय कवि,रायपुर,छ.ग.
62664 19992, 9009415415.