अंत: स्थल में किधर किधर ,
अंतः स्थल में इधर उधर …।
मस्त पुरवाई की अंगड़ाई है ,
पूर्वी बसंत के भीतर भीतर ।।
फिक्र करने वालों की रीति रिवाज़ भी वैसे ही ।
भीतरी धड़कन की धीमी आवाज़ भी वैसे ही ।।
हालात देखकर उसने मेरा …।
मस्त हवा के झोंकों ने मुंह फेरा ।।
अंतः स्थल में किधर किधर ,
अंतः स्थल में इधर उधर …।
मस्त पुरवाई की अगंड़ाई है ,
पूर्वी बसंत के भीतर भीतर ।।
आवाज़ सुना जाओ वो चेहरा दिखा जाओ ।
आवाज़ सुना जाओ चेहरा वो दिखा जाओ ।।
इधर आओ मेरे करीब आओ कहते कहते ।
ठंडी हवा के झोंकें हल्के हल्के बहते बहते ।।
अंत: स्थल में किधर किधर ,
अंत: स्थल में इधर उधर …।
मस्त पुरवाई की अगंड़ाई है ,
पूर्वी बसंत के भीतर भीतर ।।
फिक्र करने वालों की रीति रिवाज़ भी वैसे ही ।
भीतरी धड़कन की धीमी आवाज़ भी वैसे ही ।।
हालात देखकर उसने मेरा …।
मस्त हवा के झोंकों ने मुंह फेरा ।।
मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क, नई दिल्ली
मो.नं.7982510985