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सन 1857 की क्रांति में,
एक भूचाल जो लायी थी।
लक्ष्मीबाई से भी ज्यादा
ख्याति पायी,
वो झलकारी बाई थी।
माता जिनकी जमुना देवी,
पिता सदोवर कोली थे।
कोली परिवार में जन्म हुआ,
ग्राम भोजला निवासी थी।
दुल्हन बनी पूरन सिंह कोली की,
वो बेहद सुंदर नारी थी।
बचपन से ही शूर-वीर थी,
घोड़ा जिसकी सवारी थी।
खेला करती ढाल, तलवार से,
शस्त्र जिसका बरछी, तीर,
कटारी थी।
भीड़ गई थी जंगल में वो,
तेंदुए को मार गिरायी थी।
अदम्य साहस उसके अंदर,
डकैतों को भी खदेड़ भगाई थी।
बधाई देने गई राजभवन,
मिली वो झांसी रानी से।
हमशक्ल थी रानी की वो,
पर कम नहीं किसी महारानी से।
देख दुर्दशा झांसी की,
वो कूद पड़ी रणभूमि में।
हाहाकार मचा रिपुदल में,
जब हुंकार भरी रणभूमि में ।
रूप सिंहनी, जौहर ज्वाला,
वो झांसी की नारी थी।
झलक देख दुश्मन घबराता,
वो वीरांगना झलकारी थी।
अफसोस हमें तब होता है,
जब कलमकार भी पक्षपात हैं करते।
राजा-रानी का गुणगान यहां सब करते,
पर क्यों असली नायिका को,
गुमनाम यहां सब करते।
इतिहास रचा झलकारी की,
बुंदेलों के मुख सुनी कहानी थी।
शहीद हुई रणभूमि में झलकारी भीम,
वो झांसी की भवानी थी,मर्दानी थी।
भीम कुमार
गांवा, गिरिडीह, झारखंड