सतत साधना

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सतत साधना से बढ़े,मेरा सकल समाज।

यही कामना,चाह है,भाई मेरी आज।।

सतत साधना संग हो,तब गति होगी दून।

ध्यान और नव ज्ञान बिन,सभी तरह से सून।।

करें साधना लोग जब,पाएँगे उजियार।

जीवन पाए ताज़गी,एक नया आकार।।

जब तक ना हो साधना,बढ़ता नहीं समाज।

आज सफल हो हम करें,सबके दिल पर राज।।

संतों ने यह ही कहा,पढ़ना-लिखना ख़ूब।

सतत साधना से उगे,नव विकास की दूब।।

सतत साधना लक्ष्य को,पाने का हथियार।

पढ़ना -लिखना शान है,मिले ख़ूब जयकार।।

जीवन में तब खेलती,अधरों पर मुस्कान।

सतत साधना से बनें,हम क़ाबिल इंसान।।

सतत साधना कर बढ़ें,तब पाएँगे शान।

देश बने खुशहाल तब,होगा नित उत्थान।।

सतत साधना से प्रखर,बनते सारे लोग।

ढीले-ढाले जो रहे,समझो यह है रोग।।

देश चाहता सब बढ़ें,बढ़कर साधें देश।

वैभव बढ़ पाए तभी,दूर हटे हर क्लेश।।

सतत साधना कर रहे,बच्चे और जवान ।

अब निश्चित इंसान की,बढ़ जाएगी शान।।

सतत साधना दे रही,नवचेतन की धूप।

नव विकास इस देश का,बदल रहा है रूप।।

        –प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

                  मंडला,मप्र