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मन मंदिर में छाये
वो आहिस्ता से आये
क्यों आये,कैसे आये
यह हम कैसे बताये
बीज का वपन हुआ
फिर अंकुरण हुआ
पल्लवित हुआ
और पुष्पित हुआ
लेकिन
फलित होने से रह गया
कुछ अधूरा सा रह गया
कदाचित हित टकराये
और फलित डगमगाये
जड़ ने जगह छोड़ दी
प्रीत ने आशा छोड़ दी
मंजिल हुई निरी सूनी
ताने बाने से जो बुनी
दोराहे पर खड़े रहकर
काफी सोच समझकर
दूर होती गई प्रीत
यही है जग की रीत
वो साथ नहीं आई
स्मृतियां साथ आई
तरुण कुमार दाधीच
36,सर्वऋतु विलास, मेन रोड,
उदयपुर(राज) 313001