*****************
मैं प्यार जताती रही मगर
तुम कुछ न बोले आज तलक
मेरे अंतस की तड़प देख
तुम भी तो कुछ कहो प्रिये।
क्या प्यार नहीं तुम करते हो
या सम्मुख कहने से डरते हो,
डर छोड़ झिझक को परे करो
तुम भी तो कुछ कहो प्रिये।
क्यों मंद-मंद मुस्काते हो
नयनों से वाण चलाते हो,
जो कहना उसे जताते हो
तुम भी तो कुछ कहो प्रिये।
मधु शब्द मधुर प्यार भरे
सुनने को हूं बेताब बड़ी,
मैं दुखी प्यार की फुहार पड़े
तुम भी तो कुछ कहो प्रिये।
‘अलका’ पूछे वैरी जग से
बिन प्रेम के जगत श्मशान,
जन उपवन बने हरे कैसे
तुम भी तो कुछ कहो प्रिये।
अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’
लखनऊ उत्तर प्रदेश
7408160607