“मेरी चेतना”

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जब-जब स्याह रात होगी,

भय से मुलाकात होगी,

अंदर का साहस,

जब खोने लगेगा,

जी हाँ……..देखना।

“उस वक़्त, एक ही,

मेरा साथ देगी,

वो है’मेरी चेतना…।”

बिखरे हुए साहस,भी

जब छटपटाएँगे,

रेत के कण की तरह,

ये उड़ते जाएंगे,

तब,दौड़-दौड़कर,

उनको होगा हमें सहेजना।

उस वक्त……..

जब कोई भी,

बड़ा काम आएगा,

धैर्य भी हमारा,

साथ छोड़ जाएगा,

फिर सुस्त पड़ रहे,

तन मन को होगा समेटना।

“उस वक्त एक ही,

मेरा साथ देगी….

“वो है, मेरी चेतना….

जीवन चन्द्राकर”लाल”

   गोरकापार, बालोद(छत्तीसगढ़)