पाय निमंत्रण मुनिश्री ले राम को पहुंचे जनक के द्वार।
विदेह राज सीता मां के स्वयंवर में बहु राजन आए रहे अपार।
विवाह जानकी के स्वयंवर में राजन लगाई शर्त रखाय,
शिव धनुष सुनाभ को तोड़ वीरवर सिर विवाह रचाय।
देश देश के राजागण स्वयंवर हित लगे जोर अजमाने,
शंभू धनुष भारी नहीं उठा होश गए लगे रहे ठिकाने।
लंकापति रावण उठ आए के रहे धनुष लगे उठाने,
धनुष मही बीच हाथ दबा रावण को आ बहुत पसीने।
प्रभु से आयसु पाय के रावण स्वहस्त निकाल गया है,
दंभी मदी रावण सिया को लंका ले जाने प्रण किया है।
राजा स्वयंवर में वीरों को निस्तेज देख आत्मालाप किया।
क्षत्रिय रंग में दौड़ लहू लखन बहुत गर्म संवाद किया है।
गुरुवर की आज्ञा पाकर राम ने सुनामी धनु तोड़ दिया,
धनु टूटे गर्जन आंधी तीव्र प्रकट परशुराम मुनि क्रोध किया।
मुनि ने अपार क्रोध भरके अपने शक्ति बल उवाच किया।
रघुकुल के लखन से धरती क्षत्रिय विहीन का संवाद किया।
धनुष तोड़ने के प्रतिफल में परशु का आहार बनाउंगा।
देख राम ने परशुराम को अपनी शक्तिमय ज्ञान दिया है।
सुनो मुनि अपने भुजबल से तेरे तपोबल क्षीर्ण करता हूं।
ठहरे और यहां पर तेरे मनो गति तब को विदीर्ण करता हूं।
सुन मुनि राम की बातें नतमस्तक हो गया प्रणाम वीर,
देकर आशीर्वाद चले गए और मनोगति अधिक धीर।
रघुकुल के वीर राम को सीता ने अपना स्वामी स्वयंवर चुन ली
संदेश पाय बारात लाएं अवधनगरी में छाई खुशियां दुगुनी।
राम रघुकुल के वीर सीता को विवाह कर अवध लेकर आए,
राजा सिया राम संग सुपुत्री को विवाह अति प्रमुदित हर्षाएं।
अवध नरेश राम संग ब्याह पुत्रो को धन-धान्य बहुत लुटाए।
अयोध्यावासी चंदन वंदन वारो से घर द्वार महल सजाएं।।
के एल महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश