अभिमन्यु की वीभत्स हत्या,
जयद्रथ का तांडव।
कौरवों के राज में,
डर रहे हैं पांडव।
भीष्म से कैसी अपेक्षा,
आचार्य भी सठिया गये हैं?
गांधार के षडयंत्र सारे,
राष्ट्र को भरमा गये हैं।
धृतराष्ट्र तो जन्मांध ठहरे,
विदुर भी सहमे हुये हैं।
नीति अबला गांधारी,
मोह को पहने हुए हैं।
उलझनों का दौर है,
पार्थ भी भटका हुआ है।
कर्ण का हठधर्म हतप्रभ,
द्वण्द में अटका हुआ है।
द्रोपदी के प्रश्न मुझसे,
पूँछते हैं हल।
कौन सुलझाए गुण्ठन,
चक्र या फिर हल?
इस समस्या का हल,
दूसरा कुछ भी नही है।
पूँछता हूँ मैं तुम्हीं से,
क्या उपाय यह मेरा सही है?
कृष्ण को क्या द्वारका से,
फिर बुलाना चाहिए?
तुम बताओ क्या परशु को,
आजमाना चाहिए?
……..रमाकान्त त्रिपाठी”रमन”
जनपद कानपुर देहात
उत्तर प्रदेश।