तुम बिन मैं कैसे जी लूंगा..

कैसे मैं तुमको भूलूंगा

तुम बिन मैं कैसे रह लूंगा

साथ अगर मेरा छोड़ा तो

तुम बिन मैं कैसे जी लूंगा..।।

प्रेम डोर तोड़ो मत ऐसे

जोड़ेंगे फिर इसको कैसे

टूटा अगर भरोसा अपना

तुम बिन मैं कैसे सह लूंगा..।।

विरह वेदना कब भाता है

ये बस आंसू दे जाता है

रोते-रोते भला बताओ

तुम बिन मैं कैसे हंस लूंगा..।।

त्याग समर्पण सब कुछ मैंने

तुमको अर्पण कर डाला है

वीराने इस प्रेम भवन में

तुम बिन मैं कैसे रह लूंगा..।।

तुम ही तो मेरी कविता हो

लिखने की तुम ही प्रतिभा हो

भाव अगर छिन जाएंगे तो

तुम बिन मैं कैसे लिख लूंगा..।।

तुम बिन मैं कैसे लिख लूंगा..।।

***विजय कनौजिया***

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