इलाही इश्क है तो गैरत की चाहत न कर,
परवरदिगार साथ औरों की चाहत न कर।
दुनिया में कितने झमेले हैं और अकेले भी
दिल महफिल में नफरत की चाहत न कर।
खुदा मुकम्मल इश्क प्यार में सुकूनभरी है
इश्क की दुनिया में दौलत की चाहत न कर।
फ़कीर हमारा जीना मुश्किल कर के अपने
ऐसी बेगानों से अपनाने की तू चाहत न कर।
इश्क में महफूज रख अश्कों नहीं आंखों में
इश्क सौदेबाजी दिलबर की तू चाहत न कर
पागल बेगानों की दुनिया में एक अकेला है
परवरदिगार तेरे हैं गैरों की तू चाहत न कर
होठ मृदु अधरो पे मुस्कान बिखर आने पर
‘केएल’ इलाही इश्क दीवाने तू चाहत न कर।
के एल महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश