बढ़ना खुद से कठिन डगर है

बढ़ना खुद से कठिन डगर है,

हाँ सच में आसां न सफ़र है ।

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कुदरत तमलीन हुई देखो,

सब मगन किसी को न फ़िकर है ।

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क्या सच हम इतने बदल गए !

कि हमें अपनी ही न खबर है ।

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अब जो मिलकर सब न चले तो,

होगा फिर हर तरफ़ क़हर है ।

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मिलन कहे झाँक ज़रा मन में,

जग की तेरी तरफ़ नज़र है ।

भावना अरोड़ा ‘मिलन’