जब से ऊँचे ओहदों से ये
पैग़ाम आया है
मेरी मेहनत का
अब ईनाम आया है
गुज़रे कल में जो लोग
जला करते थे
आज मिलने की तलब
सुबह शाम आया है
और चंद लोग जो अब भी
तपिश में जलते हैं
कितने बेशर्म हैं झुक कर
सलाम आया है
मैं भी ख़ुदगर्ज़ नहीं
बात मेरे शान की है
इस बुलंदी पे जबसे
मेरा नाम आया है
मेरे लहज़े ये हकीक़त
बयाँ करते हैं
शहर में धूम है नज़्म-ओं
क़लाम आया है
● निधि जोशी
शाहपुरा/ मुम्बई