इन्दौर । गीता कर्तव्य के बोध और जीवन को सकारात्मक ढंग से जीने का संदेश देती है। गीता पुरुषार्थ का संदेश देती है, पलायनवाद का समर्थन कतई नहीं करती। शरीर नश्वरवान है, लेकिन आत्मा अजर अमर है- इसका आशय यही हुआ कि सृष्टि में सब कुछ परमात्मा की कृपा से ही संभव है। जीव, जगत और जगदीश्वर तीनों ही रूपों में भगवान का अस्तित्व मौजूद है। गीता के संदेश हमें कर्मयोगी बनाने की ओर प्रवृत्त करते हैं। समाज और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह हम कब, क्यों और कैसे करें – इसका मंत्र गीता से ही मिलता है। गीता उस खजाने की तरह है, जिसमें जीवन को सदगुणों से श्रृंगारित करने के अनेक अनमोल रत्न भरे पड़े हैं।
ये प्रेरक विचार हैं जगदगुरु शंकराचार्य, पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज के, जो उन्होंने आज शाम गीता भवन में चल रहे 64वें अ.भा. गीता जयंती महोत्सव की महती धर्मसभा में व्यक्त किए। प्रारंभ में ट्रस्ट मंडल की ओर से आचार्य पं. कल्याणदत्त शास्त्री द्वारा वैदिक मंगलाचरण के बीच ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, रामविलास राठी, दिनेश मित्तल, मनोहर बाहेती, टीकमचंद गर्ग, प्रेमचंद गोयल, सत्संग समिति के अरविंद नागपाल, गीता भवन हास्पिटल के डायरेक्टर डॉ. आर.के. गौर आदि ने पादुका पूजन किया। इसके पूर्व सत्संग सभा में डाकोर के वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंददास, पानीपत से आई साध्वी ब्रह्मज्योति सरस्वती, परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के स्वामी शंकर चैतन्य, चिन्मय मिशन इन्दौर के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती, उज्जैन के स्वामी वीतरागानंद, भीलवाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज आदि ने भी अपने प्रवचनों में गीता, रामायण एवं महाभारत के विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या की। अध्यक्षीय उदबोधन में जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज ने सबके मंगल की कामना की। मंच का संचालन स्वामी देवकीनंददास ने किया।
:: जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विवेक के साथ कर्तव्यों का पालन करना ही गीता का मुख्य संदेश ::
चिन्मय मिशन इन्दौर के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती ने कहा कि सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण – ये तीन बातें हैं जिन पर साधक को अपने व्यक्तितत्व एवं चरित्र के निर्माण में ध्यान देना जरूरी है। कई बार सतोगुण भी अहंकार का रूप ले लेता है। यदि हमें श्रेष्ठ कर्म करना है तो अंतरात्मा में बैठी सत्ता से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना होगा। राग और द्वेष के बिना कोई व्यक्ति रह नहीं सकता। जहां राग होगा, वहां द्वेष भी आएगा और जहां द्वेष होगा वहां राग भी आए बिना नहीं रहेगा। जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विवेक के साथ कर्तव्यों का पालन करना ही गीता का मुख्य संदेश है।
भीलवाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने कहा कि गीता ऐसा पवित्र ग्रंथ है जो हमें कर्तव्यों की और ले जाता है। संपूर्ण ग्रंथों में आत्म शांति और आत्म कल्याण के लिए गीता में ही सम्पूर्ण सार दिया गया है। जिसने गीता के संदेशों को सही मायनों में अपने जीवन में अपना लिया, उसके लिए कभी कोई समस्या नहीं आ सकती। शांति और समता चाहिए तो गीता के संदेश ही सक्षम है।
डाकोर से आए वेदांताचार्य स्वामी देवकीनंददास ने कहा कि आज का मनुष्य तीन कारणों से भक्ति करता है – अभाव, प्रभाव और स्वभाव। अभावग्रस्त व्यक्ति किसी न किसी कामना से भगवान के घर दस्तक देता है। प्रभाव वाला व्यक्ति समाज में अपने प्रभुत्व को दिखाने के लिए भक्ति करता है और स्वभाव से प्रेरित भक्ति वह होती है जिसमें मनुष्य अपने संस्कारों के आधार पर मत्था टेकता है। हमने भक्ति के इतने सारे स्थान खोज लिए हैं कि हमारी भक्ति किसी एक जगह टिकती ही नहीं। पांच-पांच फीट के 20 गड्ढे खोद लेने से पानी नहीं मिलेगा, पानी तो 200 फीट का एक गड्ढा खोदने के बाद ही मिलेगा। आशय यह है कि हम लोग अपनी भक्ति को एक जगह पर किसी एक ईष्ट या देवता को समर्पित करेंगे तो ज्यादा फलीभूत होंगे।
उज्जैन से आए स्वामी वीतरागानंद ने कहा कि किसी भी उपलब्धि के पीछे त्याग की भावना होना चाहिए। नित्य और अनित्य का विवेचन करने वाली बुद्धि संतों के सान्निध्य से ही मिलेगी।
जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने अपने एक घंटे के उद्बोधन में गीता के श्लोक की व्याख्या करते हुए कहा कि गीता में प्रवृत्ति को निवृत्ति बनाने की अदभुद क्षमता है। अर्जुन की तरह गीता ज्ञान प्राप्त करने की परंपरा चलती रहना चाहिए। गीता के अध्याय 8 और 12 में भगवान ने कहा है कि हमारा जीवन दूसरों के लिए भी उपयोगी है। हम यदि प्रतिदिन भोजन करने में 15 मिनट का समय लेते हैं तो 15 मिनट के लिए भजन भी कर लें तो पांच घंटे तक ऊर्जा बनी रहेगी। गीता में अंतःआराम, अंतर्सुख और अंतर्ज्योति का समन्वय मनुष्य शरीर में है। गीता को जीवन का साधक बनाकर अनुशासित ढंग से जीवन जीने की पद्धति तभी मिलेगी जब हम अपने अहं का विसर्जन कर अपनी भक्ति साधना में परम सत्ता के प्रति समर्पण का भाव रखेंगे।
:: आज गीता गीता जयंती का मुख्य पर्व ::
गीता जयंती महोत्सव में मंगलवार 14 दिसम्बर को सुबह 6.30 से 7.30 बजे तक शालीग्राम के विग्रह पर विष्णु सहस्त्रनाम से अर्चना के बाद देश के जाने-माने संत विद्वानों के सानिध्य में गीता का सामूहिक पाठ सुबह 8 से 10.30 बजे तक होगा। देश में केवल इँदौर का गीता भवन ही ऐसा स्थान है, जहां प्रतिवर्ष मोक्षदा एकादशी पर गीता का सामूहिक पाठ किया जाता है। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु दान का पुण्य लाभ भी लेंगे। दोपहर की सत्संग सभा 1.30 बजे से शुरू होगी, जिसमें भजन संकीर्तन के बाद दोपहर 2.30 बजे इन्दौर के गोस्वामी दिव्येश कुमार, 3.30 से भीलवाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज, 4.30 बजे से जगदगुरु शंकराचार्य पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के प्रवचनों के बाद 5.30 बजे से जगदगुरु स्वामी रामदयाल महाराज के अध्यक्षीय आशीर्वचन होंगे।
:: 29 संतों का स्वास्थ्य परीक्षण ::
गीता जयंती महोत्सव में आए वरिष्ठ संतों के उपचार एवं स्वास्थ्य परीक्षण हेतु गीता भवन सत्संग सभागृह के पास गीता भवन हास्पिटल की ओर से दो चिकित्सकों सहित अस्थायी परार्मश केन्द्र स्थापित किया गया है, जहां प्रतिदिन सुबह 11 बजे से बाहर से आने वाले संतों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जा रहा है। अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. आर.के. गौर ने बताया कि आज 29 संतों को मधुमेह, रक्तचाप एवं नेत्र रोग संबंधी चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराई गई।
उमेश/पीएम/13 दिसम्बर 2021