किसान बेहाल है

कितने राज गए और आए

अब भी गांव गरीब है।

खेत हमारे,फसल तुम्हारी

फूटा पड़ा नसीब है।।

खेती है घाटे का सौदा

लागत निकल ना पाती है।

बीज, यूरिया, डीएपी 

सारे पैसे खा जाती है।

कैसे चले ट्रैक्टर

डीजल सौ के हुआ करीब है।।

अब भी गांव गरीब है।।

कभी बहुत बरखा होती है

अक्सर पड़ता सूखा है।

कभी पेट भर खा ना पाया

ग्राम देवता भूखा  है।

कभी नहीं जागा किसान का

फूटा पड़ा नसीब है।।

अब भी गांव गरीब है।।

बातें बड़ी बड़ी होती हैं

लंबे लंबे भाषण है।

पता चला खा गया माफिया

 कोटेवाला राशन है।

जमीदार है घात लगाए

साहूकार करीब है।

अब भी गांव गरीब है।।

आय दोगुनी करने वाले

आधी करके चले गए।

लाखों लाख किसान आज

 ढोंगी के हाथों छले गए।

पड़ी पेट में लात, आज फिर

मारा गया गरीब है।।

फूटा हुआ नसीब है।।

# शिवचरण चौहान

कानपुर