ईश्वर है या नहीं,
मैं नहीं जानती!
लेकिन पक्षियों में,
चहचहाता कौन है?
सरिता की कल-कल में,
यह गाता कौन है?
बारिश बन आँगन में,
यह बरसता कौन है?
सर्दी, धूप और चाँदनी,
सबको परसता कौन है?
गर्भ में नन्हें शिशु को,
आख़िर पालता कौन है?
दुर्घटना में मृत्यु को,
आख़िर टालता कौन है?
कौन है वो आख़िर,
जो हर ग़म में सहारा है?
दुःख में सदा हमने,
जिसको पुकारा है!
विपत्ति से निकल हम,
करते हैं जिसका आभार!
हर एक पल, हर एक क्षण,
बरसता है जिसका प्यार!
भले ही न हमने देखा हो उसे,
न दे सकें हम कोई आकार।
पर हम सभी के जीवन का,
कहीं पर कोई तो है आधार।
जिसकी गाथा गाते हैं,
गीता, वेद और पुराण।
जिसकी चर्चा करते हैं,
गुरू-ग्रंथ, बाइबिल, कुरान।
मैं तो बहुत तुच्छ हूँ महोदय,
खुद को भी नहीं पहचानती।
ईश्वर है या नहीं,
मैं नहीं जानती!!
—डा. सारिका मुकेश
वेल्लोर―632 014
(तमिलनाडू)