मतलब से फिर आ गए, झोली लेकर द्वार ।
वही पुराना राग फिर, बातें लच्छेदार ।
बातें लच्छेदार, चाशनी में हैं डूबी ।
बातों में लें फाँस, यही है इनकी खूबी ।
कह ‘कोमल’ कविराय, नटों से इनके करतब ।
करें उसी से बात, जहां हो इनका मतलब ।
इनकी बातों का नहीं, कभी करें विश्वास ।
जिनसे इनका काम हो, वह ही इनका खास ।
वह ही इनका खास, उसी से रिस्ता-नाता ।
और काम के बाद, वही ना इनको भाता ।
कह ‘कोमल’ कविराय, सुनो तुम अपने मन की ।
नहीं करें विस्वास, कभी बातों का इनकी ।
डंका फिर से बज उठा, सावधान हों आप ।
बिल से बाहर आ गए, कई विषैले सांप ।
कई विषैले सांप, दूध अब इन्हें पिलाओ ।
देकर वोट-सपोट, इलेक्सन इन्हें जिताओ ।
कह ‘कोमल’ कविराय, करो मत इन पर शंका ।
करो चुनाव प्रचार, बजा है फिर से डंका ।
● श्याम सुंदर श्रीवास्तव ‘कोमल’
अशोक उ०म० विद्यालय, लहार
भिण्ड (म०प्र०)