नाम तुम्हारा नही लिखा

कह न सके हम जिन बातों को लिखा है उनको गीतों में।

नाम  तुम्हारा  नहीं  लिखा पर  तुम हो  सभी  प्रतीकों में।

लिखे गीत हमने जो तुमको अब गाकर उनको मुस्काते हैं।

हो   बसन्त  या  चाहे  सावन   बस  तुमको  ही  गाते  हैं।

एक   निराली   रीति  प्रेम  की   न्यारी  है  सब   रीतों  से।

नाम  तुम्हारा  नहीं  लिखा  पर तुम हो  सभी  प्रतीकों  में।

प्रेम    हमारा   बहुत   है   पावन  जैसे  गंगा की धारा है।

शब्द  शब्द  गीतों  का  मेरे  नित  कहता नाम तुम्हारा  है।

तुम  सा  मीत  नहीं  है कोई तुम न्यारे  हो  सब  मीतों से।

नाम  तुम्हारा  नहीं  लिखा  पर  तुम हो सभी  प्रतीकों में।

मिलन  गा रहा  गीत  विरह  के  अश्रु  नैन  से  बहते  है।

प्रेम   प्रसून   गिरे  शाखों   से  कष्ट   हजारों  सहते   हैं।

साथ  तुम्हारा  मिले  अगर तो स्वीकार हार  है जीतों से ।

नाम  तुम्हारा  नहीं  लिखा  पर तुम  हो सभी प्रतीकों में।

दीप प्रेम का जो जलता था  वह लड़ता है झंझावातों से।

उसे   बुझाने   वाले  अब तो  मिट  गए  काली  रातो  में।

अशोक पथिक पतझर का बन के तुमको गाता गीतों में।

नाम तुम्हारा  नहीं  लिखा  पर  तुम हो  सभी प्रतीकों में।

अशोक प्रियदर्शी

चित्रकूट-उत्तर प्रदेश