विधा – छंद मुक्त
भोर भिनसार शोर नित्य चहुँओर
कलरव निकुंज-खग निशा कंठ
उड़ फुर्र चाह उर-नभ वेग-तेग
भोर-भोर कजरारे अलसाये नैन।
अँगड़ाईअलसाई अंग-अंग मोरनि
प्रातः उच्छ्वास जैसे झंझावात
मृदु मुस्कान जैसे छवि कंजकली
दृष्टि भोरी चंचल जैसे गोवत्स।
मन कोमल-अमल भाव निर्मल
विवेक एक नेक हित समरूप
मृदु बोल-तौल-मोल हित जान
कमी न, कमाई गुण जान न रूपं
निशा खैरवा
रामकुमारी कॉलेज
मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज.