परवर दिगार, पैगंबर, परमात्मा
जमाने की नजर में रसूल है ।
जनाब भूख का असूल है ।
कोई जरा प्रसाद पाकर
खुशी मे मशगूल है ।
कहीं आह कहीं उफ है
कोई मुखर कोई चुप है !
भूख अतृप्त अनोखी खीर है ।
दुनिया दारी में द्रौपदी का चीर है ।
कभी जरुरत ने उपजाया होगा ।
किसी भावना ने बनाया होगा ।
भूख भूख है
इसका अजीब रसूख है ।
गरीब का पेट भरता नही
अंधेरे कुँए सा खाली रहता है ।
अधूरी कामनाएं खींच रही रस्सी है ।
रोज भरने की ठौर-ठौर रस्साकशी है ।
प्याज के छिलको सी
तह पर तह जमाए
रसभरी जलेबी सरीखी
मीठी-मीठी ईख है ।
धनवान की बदलती
हर दिन सजती-संवरती
भूख तो भूख है
इसका अजीब रसूख है ।
हरीश सुवासिया
आर.ई.एस.
देवली कलां (पाली)