ताउम्र बचपन से बुढ़ापे
तक जलती ही रहती है
आज़माईश की तपिश
में नारी
बचपन में बेटी बन
पिता का दबाव
माँ की चिंता
बहन बन भाई की रोक टोक
परिवार ,रिश्तेदारों ,आसपास पड़ोस
सब का दबाव
सबकी नज़रें हर पल ताकती
तोलती, नापती
हर कदम, हर काम,
हर पहनावा और शिक्षा, अंक,
स्कूल से कॉलेज से नौकरी से विवाह तक
बचपन से लेकर यौवन तक
रहती सबकी पैनी नज़र।।
विवाह उपरांत नए रिश्ते,
नए बंधन, नई कसौटी, नई परख
पल पल नई चुनौतीयां,
नए इम्तिहान माँ बनने तक।।
मातृत्व का सुख एक नई आनंदमयी
आज़माईश,लालन , पालन ,
पोषणबड़े होने तक
इस तरह बचपन को पार कर यौवन ,
प्रौढ़, वृद्धावस्था की उम्र पल पल सरकती रहती है
जलती, संभलती पर कभी रुकती
नहीं पल पल पिघलती
ज़िम्मेदारीयों और आज़माइशों के
पलड़ों में कभी भी…..।।
……मीनाक्षी सुकुमारन
नोएडा