कोई दूजा नहीं सहारा।।
दान नहीं हम मांगते , मत दीजै खैरात।
अपना हक़ हम चाहते, समझ जाइए बात।।
पूरा जीवन जीविका , खड़े स्वयं के पांव।
आज बुढ़ापा आ गया, ढूंढ रहे हैं छांव।।
जिम्मेदारी पूर्ण कर ,कर्मचारी हो रिक्त।
रहते खाली हाथ है, आँखें होती सिक्त।।
इज्जत की रोटी भले, मिली नमक के साथ।
खाकर खुश थे हम सदा, पर ऊंचा था माथ।।
जीवन भर हमने किया ,अपना सेवा दान।
पेंशन बिन कैसे जिएं,खोकर अपना मान।।
करके मेहनत रात दिन , पाला है परिवार।
आज रिटायर हो गए, नहीं बचा आधार।।
पैसे पैसे के लिए , फैलाएंगे हाथ।
मिलती पेंशन है नहीं,कौन सहारा साथ।।
है सेवा निवृत्ति बड़ी, कठिन परीक्षा काल।
खत्म कभी होता नहीं , रोटी का जंजाल।।
थके हुए हैं जानकर, करें रिटायर आप।
अब दो रोटी के लिए , रहे सड़क को नाप।
अनुवृत्ति लागू करें , यही मांग है आज।
सविनय करते हैं विनय, सदा करेंगे नाज ।।
जयश्रीकांत जयश्रीकांत जय। सिंगरौली एम पी